पारिभाषिक शब्दकोश
(Dictionary of Definitions)
भाषा: वह
साधन है, जिसके द्वारा बोलकर, सुनकर, पढकर या लिखकर भावों या विचारों का आदान-प्रदान
होता है।
उपभाषा: बोली का लिखित साहित्यिक रूप।
बोली: छोटे
क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा का स्थानीय रूप।
लिपि: भाषा चिन्हों का लिखित रूप।
व्याकरण: भाषा के नियमों का बोध कराने वाला शास्त्र।
वर्ण: भाषा
की छोटी इकाई, जिसके टुकडे न किये जा सके।
वर्णमाला: किसी भी भाषा के वर्णों का क्रमबद्ध समूह।
स्वर: वे
वर्ण जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है तथा जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक
होते हैं। जैसे- अ ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ,अं,अः, ये कुल १३ होते हैं।
व्यंजन: जिन
वर्णों के उच्चारण में वायु रुकावट के साथ मुँह से बाहर निकलती है तथा जिनके उच्चारण
में स्वरों की सहायता लेनी पडती है। जैसे- क,ख से लेकर ड,ढ तक, ये कुल
३५ होते हैं।
संयुक्त व्यंजन: दो
या दो से अधिक व्यंजनों के संयोग से बनने वाले व्यंजन। जैसे- क+ष=क्ष, त+र=त्र,
ज+ञ=ज्ञ, श+र=श्र
व्यंजन
द्वित्व: दो समान व्यंजनों के संयोग से
बनने वाला व्यंजन। जैसे- त्त, म्म।
हलन्त: स्वर
से रहित व्यंजनों के नीचे लगाई जाने वाली टेढी रेखा।
प्रयत्न: किसी
वर्ण के उच्चारण के समय मुख के अंदर किया जाने वाला प्रयास। इसके दो प्रकार
होते हैं- आभ्यन्तर, बाह्य
अनुतान: बोलते
हुए सुर का आरोह-अवरोह।
बलाघात: शब्द
के उच्चारण में विशेष स्थान पर दिया गया बल। जैसे- राम में ’रा’ पर तथा कबीर में
’बी’ पर बलाघात है।
सज्ञा: व्यक्ति,
वस्तु, स्थान, स्थिति, भाव या विशेषता का नाम। जैसे- राम, मेज, दिल्ली आदि।
जातिवाचक
संज्ञा: जातिसूचक नाम का बोध कराने
वाला पद। जैसे- कबूतर, पुस्तक आदि।
व्यक्तिवाचक
संज्ञा: किसी विशिष्ट नाम का बोध कराने
वाला पद। जैसे राम, गंगा, हिमालय आदि।
भाववाचक संज्ञा: गुण,
दशा, भाव, स्थिति या विशेषता के नाम का बोध कराने वाला पद। जैसे- गरीबी,
ममता, सच्चाई आदि।
सर्वनाम: संज्ञा के स्थान पर (बदले में)
प्रयोग में आने वाला पद। जैसे- यह,वह, तुम आदि।
सर्वनाम के ६ भेद होते हैं-
I पुरुषवाचक सर्वनाम: वक्ता,
श्रोता और अन्य पुरुष के लिये प्रयुक्त सर्वनाम।
जैसे- तुम क्या कर रहे हो?।
पुरुषवाचक सर्वनाम के तीन भेद होते
हैं-
1 उत्तम पुरुष: बोलने वाला व्यक्ति स्वयं अपने लिये जिन
सर्वनामों का प्रयोग करता है।
जैसे- मैं, मेरा, हम, हमारा, मुझे, हमें आदि
2 मध्यम पुरुष: सुनने
वाले के लिये जो सर्वनाम प्रयोग में लाये जाते हैं।
जैसे- तू, तुम, तेरा, तुम्हारा,
आप, आपका आदि।
3 अन्य पुरुष: जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग बोलने वाला
या लिखने वाला व्यक्ति सुनने व पढ़ने वाले के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के लिये करता
है।
जैसे- वे, उसे, उसका, उनका, उन्हें
आदि।
II निश्चयवाचक सर्वनाम: जिस
सर्वनाम से किसी पास या दूर की वस्तु या व्यक्ति का निश्चयपूर्वक बोध हो।
इसे संकेतवाचक सर्वनाम भी कहते हैं।
जैसे- वह मकान मेरा था, वह मैंने बेच दिया।
III अनिश्चयवाचक सर्वनाम: अनिश्चित
व्यक्ति या वस्तु के स्थान पर प्रयुक्त सर्वनाम।
जैसे- दाल में कुछ काला-काला है।
IV प्रश्नवाचक सर्वनाम: प्रश्न
के रूप में प्रयुक्त सर्वनाम। जैसे- उस कमरे के भीतर कौन गया है?
V संबंधवाचक सर्वनाम: वाक्य
में प्रयुक्त संज्ञा या सर्वनाम से संबंध स्थापित करने वाला सर्वनाम।
जैसे- जिसकी लाठी उसकी भैंस।
VI निजवाचक सर्वनाम: कर्ता
द्वारा अपने लिये प्रयुक्त किये जाने वाले सर्वनाम।
जैसे- मैं अपने आप ही चला जाऊँगा।
विशेषण: वाक्य
में संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताने वाला पद। जैसे- यह भवन बड़ा ऊँचा और सुन्दर है।
विशेष्य: जिन संज्ञा या सर्वनाम पदों की विशेषता बताई जा रही
हो। जैसे- सुन्दर बच्चे।
( इसमें
बच्चे विशेष्य और सुन्दर विशेषता है।)
गुणवाचक विशेषण: संज्ञा
या सर्वनाम पदों के गुण-दोष बताने वाला पद। जैसे- रामलाल एक अच्छा और भला
व्यक्ति है।
संख्यावाचक विशेषण: संज्ञा या सर्वनाम की संख्या बताने
वाला पद। जैसे- हमारे बगीचे में पाँच
वृक्ष हैं।
परिमाणवाचक विशेषण: संज्ञा या सर्वनाम पद के परिमाण
(मात्रा) का बोध कराने वाला पद। जैसे- गाड़ी में दो लीटर पेट्रोल है।
सार्वनामिक
या
संकेतवाचक विशेषण: विशेषण
की तरह प्रयोग में आने वाला पद। जैसे- वह
लड़का मेरे मित्र का बेटा है।
प्रविशेषण: जो पद विशेषण की
भी विशेषता बताते हैं, उन्हें प्रविशेषण कहते हैं। जैसे- गहरा लाल कोट लाओ।
विशेषणों की अवस्थाएँ: व्यक्ति या वस्तुओं के गुण-दोष के
न्यूनाधिक्य को तुलनात्मक रूप से प्रकट करने वाली अवस्था।
ये तीन अवस्थाएँ होती हैं- मूलावस्था (अधिक)
उत्तरावस्था (अधिकतर)
उत्तमावस्था (अधिकतम)
क्रिया: वाक्य
में किसी कार्य के करने य होने का बोध कराने वाला पद। जैसे- खाना, खेलना, सोना, हँसना आदि।
धातु: क्रिया
के विभिन्न रूपों में समान रूप से पाया जाने वाला अंश। जैसे- लिख धातु से लिखा, लिखूँगा,
लिखे, लिखो आदि।
सकर्मक क्रिया: जिस
क्रिया में कर्म उपस्थित हो। जैसे- मैंने पुस्तक पढ़ी।
अकर्मक क्रिया: जिस
क्रिया में कर्म उपस्थित न हो। जैसे- लड़की हँस रही है।
द्विकर्मक
क्रिया: जिस
क्रिया में दो कर्म उपस्थित हो। जैसे- नौकर ने मालिक को खाना खिलाया।
इन तीन क्रियाओं के अतिरिक्त ७ अन्य
क्रियाएँ होती हैं-
सहायक क्रिया: कई बार वाक्य में मूल क्रिया के अतिरिक्त
कुछ अन्य क्रियाएँ प्रयुक्त की जाती हैं। जैसे- चोर भाग गया।
सामान्य क्रिया: वाक्य में जहाँ केवल एक क्रिया का
प्रयोग हो। जैसे- मीना ने गीत गाया।
संयुक्त क्रिया: एकाधिक भिन्नार्थक क्रियाओं से
बना पूर्ण क्रिया का संयुक्त रूप। जैसे- पवन खाना खा चुका।
नामधातु: संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि से बनने वाली क्रियाएँ।
जैसे- ’हाथ’ से ’हथियाना’, जैसे- अपना से अपनाना, चमक से चमकाना।
अनुकरणात्मक धातु: जो धातुएँ ध्वनि के अनुकरण पर बनाई जाती हैं।
जैसे- खट खट से खटखटाना।
प्रेरणार्थक
क्रिया: वह
क्रिया जिसे कर्ता स्वयं न करके किसी अन्य से कराता है। जैसे- मोहन नौकर से कपड़े धुलवाता
है।
पूर्वकालिक क्रिया: मुख्य
क्रिया से पहले प्रयुक्त कोई क्रिया। जैसे-
बच्ची दूध पीकर सो गई।
I अपूर्ण क्रिया: कर्ता
और क्रिया के रहते हुए भी जब क्रिया का पूरा अर्थ स्पष्ट नहीं होता। जैसे- वह स्वस्थ
था।
अपूर्ण क्रिया दो प्रकार की होती है-
A अपूर्ण सकर्मक: जो एक कार्य के रहते हुए भी पूरा अर्थ नहीं देती। जैसे- हमने नितिन को
मूर्ख बनाया।
B अपूर्ण अकर्मक: जिनमें पूर्ण अर्थ के बोध के लिये किसी पूरक की आवश्यक्ता पड़ती है। जैसे-
शिवाजी वीर थे।
II रंजक क्रिया: जो क्रिया मुख्य क्रिया में जुड़कर उसमें एक विशेष
प्रकार की नवीनता और विशेषता ला दे। जैसे- मीनल गाना गा सकती है।
काल: क्रिया के होने या करने
के समय का बोध कराने वाला पद। काल के तीन भेद होते हैं-
I भूतकाल: क्रिया
का वह काल (समय) जो बीत गया हो। जैसे- राम सो रहा था। भूतकाल के छः भेद होते हैं-
1 सामान्य
भूत: जिसमें बीते हुए समय में होने वाली
क्रिया का सामान्य रूप हो।जैसे- पिताजी दफ्तर से आये।
2 आसन्न भूत: आसन्न का अर्थ होता है- निकट। जिसमें यह जाना जाता
है कि क्रिया भूतकाल में आरंभ होकर अभी-अभी समाप्त हुई है। जैसे- सुशीला बाज़ार गई है।
3अपूर्ण भूत: जिसमें यह ज्ञात हो कि क्रिया भूतकाल में हो
रही थी, परंतु यह पता न चले कि कार्य समाप्त हुआ या नहीं। जैसे- वह कविता लिख रहा था।
4 पूर्ण भूत:
जिसमें कार्य भूतकाल में ही पूरा हो
चुका था। जैसे- रेलगाड़ी आ चुकी थी।
5 संदिग्ध
भूत: बीते हुए समय में जिस कार्य के होने
के बारे में संदेह पाया जाए। जैसे- वह आया होगा।
6 हेतु-हेतुमद भूत: इस भेद में शर्त वाले वाक्य आते हैं। अतः
जहाँ भूतकाल की एक क्रिया दूसरी क्रिया पर आश्रित हो। जैसे- यदि वर्षा होती तो खेती
हरी-भरी होती।
II वर्तमानकाल: क्रिया
का वह काल, जो अभी चल रहा है। जैसे- वह एक गीत लिख रहा है।वर्तमान काल के तीन भेद होते हैं-
1 असामान्य
वर्तमान: क्रिया के जिस रूप से उसके
वर्तमानकाल में सामान्य रूप से होने का पता चले।
जैसे- मोनिका चित्र बनाती है।
2 अपूर्ण वर्तमान: क्रिया के जिस रूप से यह पता चले कि
क्रिया अभी चल रही है, समाप्त नहीं हुई है।
जैसे- सुनील साइकिल चला रहा है।
3 संदिग्ध वर्तमान: जिसमें
वर्तमान काल में क्रिया के होने का संदेह हो। जैसे- अतुल पढ़ रहा होगा।
III भविष्यकाल: क्रिया
का वह काल, जो अभी आने वाला है। जैसे- हम कल जयपुर जाऐंगे। भविष्यकाल के दो भेद होते हैं-
1 असामान्य
भविष्य: आने वाले समय में क्रिया के
सामान्य रूप से होने की सूचना हो। जैसे- वह बाज़ार से सामान लाएगा।
2 संभाव्य
भविष्य: जहाँ आने वाले समय में
क्रिया के होने या करने की संभावना पाई जए। जैसे- शायद कल मेहमान आ जाएं।
वाच्य: क्रिया द्वारा संपादित विधान के विषय का
कर्ता, कर्म या भाव प्रधान होना।
क्रियाविशेषण: क्रिया की विशेषता का बोध कराने वाला
पद।
कालवाचक
क्रियाविशेषण: क्रिया की काल-संबंधी
विशेषता का बोध कराने वाला पद।
स्थानवाचक
क्रियाविशेषण: क्रिया की स्थान-संबंधी
विशेषता का बोध कराने वाला पद।
परिमाणवाचक
क्रियाविशेषण: क्रिया की परिमाण-संबंधी
विशेषता का बोध कराने वाला पद।
रीतिवाचक
क्रियाविशेषण: क्रिया के होने या करने का ढंग या रीति बताने वाला पद।
संबंधबोधक: संज्ञा
या सर्वनाम का वाक्य के दूसरें पदों के साथ संबंध का बोध कराने वाला अव्यय पद।
समुच्चयबोधक: शब्दों,
वाक्यांशों या वाक्यों की संबद्धता या पृथकता सूचित क्करने वाले अव्यय पद।
विस्मयादिबोधक: हर्ष,
शोक, विस्मय, लज्जा, ग्लानि आदि भाव व्यक्त करने वाले पद।
पर्यायवाची: एक
शब्द के अनेक नाम। इसे समानार्थी भी कहते हैं।
अनेकार्थी: एक
से अधिक अर्थ देने वाले शब्द।
विपरीतार्थक: शब्द
के विपरीत अर्थ क बोधक शब्द। इसे विलोम भी कहते हैं।
वाक्य: शब्दों
के सार्थक समूह से बनी वह भाषिक इकाई, जिसका एक स्पष्ट अर्थ हो।
सरल
वाक्य: जिस वाक्य में एक ही क्रिया मुख्य हो।
मिश्रित वाक्य: जिस
वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य और एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्य हों।
संयुक्त वाक्य: जिस
वाक्य में दो या दो से अधिक स्वतंत्र वाक्य समानाधिकरण समुच्चयबोधक द्वारा जुडे हुए
हों।
उपसर्ग: शब्द
के आरंभ में जुडकर उसके अर्थों में विशेषता या परिवर्तन उत्पन्न कर देने वाले शब्द
या शब्दांश।
प्रत्यय: शब्द
के अंत में जुडकर उसके अर्थों में विशेषता या परिवर्तन ला देने वाले शब्द या शब्दांश।
संधि: एकाधिक वर्णों के आपसी
मेल या संयोग से होने वाला विकार।
संधि-विच्छेद: संधि के नियमों को हटाकर वर्णों
को फिर से पहली अवस्था में ले आना।
समास: पास-पास
प्रयुक्त होने वाले एकाधिक शब्दों से बना वह शब्द-रूप, जिसमें मिलने वाले शब्दों के
मूल रूप में विशेष परिवर्तन न हो।
पद
परिचय: वाक्य में आये पदों
का व्यकरण की दृष्टि से पूरा परिचय देना।
मुहावरा: वह
वाक्य या वाक्यांश जिसको किसी विशिष्ट अर्थ-संदर्भ में प्रयोग करने का किसी भाषा-भाषी
को अभ्यास हो जाता है।
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